अजीत सिंह, चंडीगढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की चयन के लिए बनी कमेटी भंग करने से चपरासी पद के लाखों अभ्यर्थियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। कमेटी को भंग करने का फैसला बुधवार को प्रदेश कैबिनेट की बैठक में किया गया। कमेटी में इस समय चपरासियों की भर्ती प्रक्रिया अंतिम चरण में चल रही थी। नवंबर 2008 में गठित ग्रुप डी कर्मचारी चयन समिति ने जनवरी 2009 में विभिन्न सरकारी विभागों, बोर्डो, निगमों व कमेटियों के लिए 2100 चपरासियों के पदों के विज्ञापन दिया था। इन पदों के लिए 4.30 लाख आवेदन आए जिनमें से 2.30 लाख उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। राज्य के 21 जिलों की कमेटियों ने साक्षात्कार के बाद 1.10 लाख लोगों का चयन करके राज्य कमेटी के पास भेज दिया। अब राज्य कमेटी बीते सात-आठ महीने से इन चयनित उम्मीदवारों की मेरिट बनाने की जिद्दोजहद कर रही थी। असल में इन प्रत्याशियों की मेरिट बनाना काफी जोखिम भरा व लंबा है। साक्षात्कार में किसी जिला कमेटी ने काफी कम नंबर दिए और किसी ने बहुत ज्यादा। इससे जब केंद्रीयकृत मेरिट बनाई जा रही थी कि उलझन पैदा हो रही थी। आवेदन में चपरासी के पद के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता रखी गई थी। दिक्कत यह आई कि जब आवेदन मांगे गए तो हरियाणा व पंजाब में तो आठवीं का बोर्ड था पर राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में आठवीं का बोर्ड नहीं था। नतीजा यह हुआ कि राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रत्याशियों ने वहां के किसी भी निजी स्कूल से 70-80 प्रतिशत अंकों वाला प्रमाणपत्र ले लिया। इसी प्रकार हरियाणा के कई निवासियों ने भी यूपी- बिहार के निजी स्कूलों से 70-80 प्रतिशत अंकों वाले प्रमाणपत्र बनवा लिए थे, जिससे वे मेरिट में हरियाणा से आठवीं पास उम्मीदवारों से काफी ऊपर थे। कमेटी के गठन से पहले संबंधित विभाग, बोर्ड या निगम अपने स्तर पर चपरासियों की भर्ती कर रहे थे। बहरहाल अब यह सारी प्रक्रिया बेमानी हो गई है और आवेदन करने वाले लाखों लोगों के सामने सवाल खड़ा हो गया है।