Thursday, 14 July 2011

समानांतर कोर्टो की स्थापना नहीं कर सकतीं न्यायपालिका या कार्यपालिका

नई दिल्ली, एजेंसी : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि अदालतों जैसे न्यायिक प्राधिकार और अ‌र्द्ध न्यायिक मंचों की स्थापना सिर्फ अधिनियम के जरिए की जा सकती है और ऐसा अदालत के निर्देशों या कार्यपालिका के आदेश के जरिए नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि अन्यथा इससे अव्यवस्था और भ्रम पैदा होगा। न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने कहा कि इस तरह के मानदंड के जरा भी विचलन से नागरिक अधिकार बुरी तरह प्रभावित होंगे क्योंकि तदर्थ संस्थाएं जटिल मुद्दों से निपटने के लिए सही तरीके से लैस नहीं हैं। न्यायमूर्ति रवींद्रन ने अपने फैसले में कहा, लोकतंत्र में न्यायिक प्राधिकार का गठन, उसका चलना और अस्तित्व कार्यपालिका के विशेषाधिकार पर निश्चित तौर पर निर्भर नहीं करना चाहिए बल्कि विधायिका द्वारा बनाए गए उचित कानून से नियंत्रित होना चाहिए। न्यायमूर्ति रवींद्रन ने कहा, अगर कार्यपालिका के आदेशों के जरिए न्यायिक न्यायाधिकरणों की स्थापना की शक्ति को मान्यता दी गई तो उनके गठन, कार्यो, शक्तियों, अपील, पुनरीक्षण और उनके आदेशों को लागू करने के संबंध में उचित प्रावधानों के बिना ही न्यायाधिकरणों की स्थापना की पूरी संभावना होगा जिससे अव्यवस्था और भ्रम की स्थिति पैदा होगी। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त करने का निर्देश देते हुए की जिसमें शिकायत निवारण आयोग के गठन का निर्देश दिया गया था। आयोग के पास शिक्षकों की शिकायतों, उनकी पदोन्नति, उनकी बर्खास्तगी और अन्य सेवा शर्तो पर फैसला करने की शक्ति होती। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि शिकायत निवारण आयोग के खिलाफ किसी अदालत में अपील नहीं की जा सकेगी। इस आयोग की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को करनी थी। शीर्ष अदालत ने कहा, न्यायिक कार्य कर रहे तदर्थ प्राधिकारों से नागरिकों के अधिकारों के बुरी तरह प्रभावित होने का खतरा है क्योंकि वे विवादों पर फैसला करने और बाध्यकारी फैसला देने में स्वतंत्र और सक्षम नहीं हैं इसलिए राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करने वाले और न्यायिक फैसले सुनाने वाले न्यायाधिकरणों या न्यायिक प्राधिकारों की स्थापना करने में नहीं किया जा सकता।
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