Tuesday, 24 May 2011

रोजगार सेवकों की याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली
नौकरी से निकाले जाने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहंुचे रोजगार सेवकों की याचिका पर कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया है। मालूम हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने तीन साल की सेवा पूरी करने वाले रोजगार सेवकों को नौकरी से हटाने के उप्र सरकार के आदेश को सही ठहराया है। रोजगार सेवकों ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी। राज्य में करीब 45 हजार रोजगार सेवक हैं। जिसमें करीब साढ़े पांच सौ रोजगार सेवक सुप्रीम कोर्ट आये हैं। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने रोजगार सेवकों के पक्ष में अंतरिम रोक आदेश देने से मना कर दिया हो। लेकिन नयी भर्ती के आदेश पर गत 21 मई को राज्य के मुख्य सचिव दवारा अंतरिम रोक लगा दिये जाने से फिलहाल स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। रोजगार सेवकों की नियुक्ति मनरेगा के तहत एक वर्ष के लिए अनुबंध पर होती है और काम के आधार पर इनका नवीनीकरण भी किया जाता है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने सोमवार को रोजगार सेवकों के वकील की दलील सुनने के बाद ये नोटिस जारी किये। विवाद उत्तर प्रदेश सरकार के गत वर्ष जारी किये गये एक आदेश के बाद उठा। उस आदेश में राज्य सरकार ने तीन साल की नौकरी पूरी करने वाले रोजगार सेवकों को हटाने और उनकी जगह नये रोजगार सेवकों की भर्ती की घोषणा की। रोजगार सेवकों ने राज्य सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने रोजगार सेवकों के हक में फैसला दिया और राज्य सरकार का आदेश रद्द कर दिया। लेकिन राज्य सरकार की अपील पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 31 जनवरी को एकलपीठ का फैसला पलट दिया और राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया।
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