Wednesday 9 March 2011

गैस्ट के ‘मालिक’ बनने की गलत परिपाटी

हरियाणा प्रदेश के गठन के साथ ही शुरू हो गई थी गैस्ट टीचर रखने की परिपाटी
हर बार नियमित होने में कामयाब रहे गैस्ट टीचर, इस बार भी दबाव बना रहे हैं गैस्ट टीचर
नियमित होने में ‘उमादेवी बनाम कर्नाटक सरकार’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सबसे बड़ी बाधा

चोर दरवाजे से नियमित भर्ती की गलत परिपार्टी का पात्र अध्यापकों  द्वारा विरोध

चंडीगढ़: शिक्षा विभाग में वर्ष 2005-06 में गैस्ट टीचर रखने का वर्तमान सरकार का निर्णय उसके गले की हड्डी बन गया है, जिसे न उगलते बन रहा है और न निगलते। प्रदेश में इससे पूर्ववर्ती सरकारें भी गैस्ट टीचर भर्ती कर अपने हाथ जला चुकी थीं। प्रदेश के स्कूलों में नियमित शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए गैस्ट टीचर रखने की परिपाटी प्रदेश के गठन के समय से ही शुरू हो गई थी। यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि शिक्षा विभाग में प्रदेश के गठन के बाद अतिथि के तौर पर जब-जब गैस्ट टीचर लगे, वे येन-केन-प्रकारेण पद के मालिक बन बैठे। शायद यही कारण है कि वर्तमान में सेवारत गैस्ट टीचर भी पूर्व का इतिहास दोहराने का स्वप्न संजो रहे हैं परंतु सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खंड पीठ द्वारा उमादेवी बनाम कर्नाटक सरकार मामले में दिया गया निर्णय उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। अपने निर्णय में खण्डपीठ ने स्पष्ट किया था कि संविधान की धारा 14 व 16 के तहत सभी योग्य उम्मीदवारों को मैरिट के आधार पर समान रूप से अवसर दिए बिना की गई कोई भी अस्थाई नियुक्ति नियमित नहीं हो सकती। हरियाणा सरकार भी हाईकोर्ट में दाखिल अपने एक जवाब में यह कह चुकी है कि गैस्ट टीचर्स को सर्वोच्च न्यायालय के उमादेवी मामले में निर्णय के मद्देनजर नियमित नहीं किया जाएगा। वहीं अध्यापक पात्रता परीक्षा पास 53000 बेरोजगार अध्यापक भी अपनी यूनियन के माध्यम से गैस्ट टीचर्स के खिलाफ ताल ठोके हुए है।
        गैस्ट टीचर लगाने की परिपाटी प्रदेश के बनने के शुरूआती दौर में हैडमास्टर्स द्वारा अपने स्तर पर लगाए गए शिक्षकों से शुरू हुई। वर्ष 1973 में बंसीलाल की सरकार के समय शिक्षकों द्वारा स्थानातंरण के विरोध में की गई हड़ताल के चलते हड़ताली शिक्षकों की जगह ‘स्टाईपेंडरी’ शिक्षक लगाए गए। बाद में राजनीतिक हस्तक्षेप व न्यायालय के सहारे वे नियमित हो गए। स्टाईपेंडरी शिक्षक लगाने के बावजूद बचे खाली पदों पर सरकार द्वारा 6 महीने के लिए गैस्ट शिक्षक लगाए गए थे, जिन्हें ‘6 माही शिक्षक’ भी कहा जाता था। इसके बाद अस्सी के दशक में भजन लाल दौर में ‘एडहॉक’ शिक्षकों की नियुक्तियां जिला शिक्षा अधिकारी के माध्यम से की गई। इस बार भी एडहॉक शिक्षक नियमित होने में कामयाब रहे। नब्बे के दशक में एक परिवार एक रोजगार योजना के तहत जिला शिक्षा अधिकारी के माध्यम से एडहॉक शिक्षकों की नियुक्तियां की गई और वे भी नियमित हो गए। 1998 में बंसीलाल सरकार के दौर में ‘89डेज’ के लिए अनुबंध आधार पर शिक्षक लगाए गए। तत्कालीन सरकार द्वारा उम्मीदवारों से यह लिखित में लिया गया था कि वे नियमित होने का दावा नहीं करेंगे व न्यायालय की शरण में नहीं जाएंगे परंतु शिक्षक हाईकोर्ट पहुंचे व स्टे ले आए तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पूरा वेतन लेने में कामयाब रहे। वर्तमान में कार्यरत गैस्ट टीचर भी नियमित होने की जुगाड़ लगा रहे हैं। गांव स्तर पर की गई नियुक्ति प्रक्रिया, बेहिसाब गड़बड़झाले व सर्वोच्च न्यायालय का उमादेवी मामले में दिए गए निर्णय केे बाद गैस्ट टीचर्स   का नियमित होना असंभव है। इनके आंदोलन को शांत करने के लिए सरकार वेतनवृद्धि जैसे कई अन्य लाभ दे चुकी है।  परंतु अतिथि ‘मालिक’ बनने की मांग पर अड़े है। निरंतर सरकार की नाक में दम करने से वे कांग्रेस शासित सरकार की सहानुभूति गंवाते प्रतीत हो रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने गत दिवस अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया है कि अतिथि अध्यापकों द्वारा उन्हें नियमित करने की मांग कानून सम्मत नहीं है और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट उनके खिलाफ पहले ही कई निर्णय दे चुका है। उन्होंने अतिथि अध्यापकों के विपक्षी दलों के हाथों में खेलने का आरोप लगाया। 
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