Friday, 18 November 2011

जब तिहाड़ ने खोले नए रास्ते

देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ का माहौल अब बदल रहा है। तिहाड़ जेल में जेल प्रशासन की तरफ से कैदियों के लिए कैंपस प्लेसमेंट का आयोजन किया गया। कैंपस प्लेसमेंट के इस दौर में तिहाड़ जेल के कैदियों को भी यह मौका बीते आठ महीनों में तीन बार मुहैया कराया जा चुका है। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित तिहाड़ जेल के इतिहास में पहली बाद कैदियों के पुनर्वास के लिए इस तरह शुरू की गई पहल के दूरगामी और सार्थक प्रभाव हो सकते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहां बंद तीन कैदियों को सलाना छह लाख रुपये का पैकेज मिला है। यानी 50-50 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी का नियुक्ति पत्र मिला है। नौकरी के योग्य पाए गए कैदियों को नियुक्ति पत्र सहानुभूति के तहत नहीं, बल्कि उनकी शिक्षा, अनुभव व जेल में रहने के दौरान उनके व्यक्तिगत व समूह में व्यवहार को आधार बनाकर दिया गया है। गुड़गांव में अपहरण के एक मामले में बंद संदीप सिंह ने तिहाड़ में आने के बाद मास्टर्स इन टूरिज्म में पीजी डिप्लोमा कोर्स इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण किया। 2007 से जेल में बंद इस 29 वर्षीय युवा कैदी ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाया और उसकी मेहनत भी बेकार नहीं गया। इसे 50 हजार रुपये प्रतिमाह पर बतौर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर का नियुक्ति पत्र मिला है और जेल से रिहा होने के बाद वह नौकरी शुरू कर देगा। इसी तरह गुलाब सिंह जो कि पेशे से इंजीनियर था तीन साल पहले एक जुर्म के मामले में यहां आया था। तिहाड़ में उसने इग्नू से कई कोर्स किए और 50 हजार की सैलरी पर सर्विस इंजीनियर की नौकरी मिल गई है। इसी तरह बालाजी नामक कैदी को भी इतनी ही पगार हर महीने वाली नौकरी का नियुक्ति पत्र कंपनी से मिल गया है। इस तीसरे कैंपस प्लेसमेंट में एक सौ कैदियों का इंटरव्यू लेने के लिए 16 कंपनियां आई इऔर हरेक को नौकरी के काबिल पाया। पहली बार महिला कैदियों को भी जेल प्रशासन अधिकारियों ने यह मौका दिया और उन्हें भी नौकरी का प्रस्ताव मिल गया। गौरतलब है कि पहली बार तिहाड़ जेल में बीती 25 फरवरी को कंपनियां कैदियों के प्लेसमेंट के लिए आई थीं। दस कंपनियों के प्रतिनिधियो जिसमें वेदांता समूह, अग्रवाल पैकेर्स, रिलेक्सो फुटवियर, गुड हाउसकीपिंग आदि ने 43 कैदियों के इंटरव्यू लिए और 14 कैदियों को तो नौकरी का ऑफर लेटर उसी समय मिल गए थे। इनमें से किसी की नियुक्ति बतौर रिसर्च असिस्टेंट, असिस्टेंट मैनेजर व कंप्यूटर ऑपरेटर हुई तो कई कैदियों को एक से ज्यादा कंपनियों ने अपने यहां नौकरी के लिए ऑफर दिया। मुकेश 15 नंवबर को रिहा हुआ और उसी दिन उसे अगले दिन से नौकरी पर आने का प्रस्ताव भी मिल गया। एक नौकरी ड्राइवर की तो दूसरी स्टोर कीपर की यानी दो-दो प्रस्ताव। एक आम सवाल यह उठता है कि समाज व कानून की नजर में घोषित अपराधियों के लिए ऐसी पहल क्यों? सबसे पहले यह जिक्र करना जरूरी है कि इस समय तिहाड़ जेल में 25 प्रतिशत कैदी युवा हैं। ये सभी सिर्फ पढ़े-लिखे ही नहीं, बल्कि बेहतर शिक्षा प्राप्त हासिल किए हुए हैं। जेल अधिकारियों के मुताबिक जेल में ऐसे सैंकड़ों कैदी हैं जिन्होंने एमए की पढ़ाई के अलावा एमबीए, एमसीए और अन्य प्रोफेशनल कोर्स किए हैं। ऐसे अधिकांश कैदियों का व्यवहार भी जेल में बेहतर रहा है। ऐसे पढ़े-लिखे कैदी जेल से छूटने के बाद कोई जॉब न मिलने के कारण फिर से अपराध की दुनिया में लौट न आएं, इस आशंका के मददेनजर ही यह पहल की गई है। इस तरह की पहल सराहनीय है। दरअसल अपना समाज इतना उदार नहीं है और न ही वह इस सबके लिए तैयार दिखता है कि कैदी को जेल से बाहर निकलने के बाद वह समाज में उसे एक गरिमामय जिंदगी जीने का मौका दे। उसे सुधरने में सहयोग करने की बजाय उसके हर काम को शक की निगाहों से देखा जाता है। ऐसे में कैदी फिर से अपराध की दुनिया में लौट सकता है और एक अच्छी शिक्षा वाला कैदी जेल से छूटने के बाद समाज की इस तरह की उपेक्षा को अधिक समय तक सहन नहीं कर सकता। दरअसल दोषियों को सुधारने और उनके पुनर्वास के सवाल पर हमेशा विवाद रहा है। सजा के सिद्धांतों में एक के अनुसार सजा देने का उद्देश्य अपराधी को डराना है तो दूसरे सिद्वांत का मानना है कि सजा का मकसद अपराधी को पश्चाताप कराना और सुधारना है। इस तरह अपराधी के भीतर ऐसे विचार पैदा करना है कि समाज व कानून की नजर में दोषी व्यक्ति सजा के दौरान खुद को एक बेहतर इंसान बनाए। उसे ऐसा माहौल प्रदान किया जाए वह कैदी होते हुए भी बाहरी समाज से जुड़ा रहे और रिहा होने के बाद उसका सामाजिक पुनर्वास भी सहज ढंग से हो सके। वस्तुस्थिति यही है कि कानून की नजर में जो अपराध किया गया है उसकी सजा के हकदार व्यक्ति की जिंदगी वहीं खत्म नहीं हो जाती, बल्कि ऐसी सजा के बाद जो नई जिंदगी शुरू करनी होती है उसे किस तरह बेहतर बनाया जाए यह सवाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ ही इस दिशा में समाज व राज्य की पहल का भी अपना महत्व है, क्योंकि मनुष्य आज जंगलों में नहीं बसता और न ही वह समाज से कटकर जी सकता है। सोशल नेटवर्किग के दौर में भी समाज के महत्व का पता चलता है। तिहाड़ जेल की इस पहल से समाज में एक संदेश यह भी गया है कि जेल से छूटने के बाद इनका आर्थिक पुनर्वास उन्हें समाज में खोई हुई इज्जत लौटाने में मददगार साबित होगा। वह गरिमामय जिंदगी जी सकें इस कारण ही ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं। 25 फरवरी को पहले कैंपस प्लेसमेंट में संदीप भटनागार को जब नियुक्ति पत्र मिला तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, यह मेरे लिए महज नियुक्ति पत्र ही नहीं है, बल्कि समाज में मेरे पुनर्वास का आश्वासन है। अन्यथा यह समाज मुझसे किनारा कर लेता। अब मैं अपनी पत्नी और बच्चों को दिल्ली में एक गरिमामय जिंदगी देने का आश्वासन दे सकता हूं। इसी तरह 15 नंवबर को जब तिहाड़ में बंद एक बालरोग चिकित्सक को एक अस्पताल ने नौकरी के लिए नियुक्तिपत्र दिया तो उनका जवाब था, मेरे खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप तो साबित नहीं हुआ, लेकिन मैंने जो साल जेल में गुजारे हैं, उससे मेरे परिवार की प्रतिष्ठा और मेरे कैरियर पर दाग लग गया है। मेरा परिवार मुझ पर आश्रित है। जेल से बाहर जाने के बाद मेरे लिए नौकरी पाना आसान नहीं होता। इसलिए यह नौकरी महत्वपूर्ण है। देश के अन्य प्रमुख जेल प्रशासनों को भी तिहाड़ के आर्थिक पुनर्वास मॉडल यानी कैंपस प्लेसमेंट की पहल को अपनाने के लिए प्रेरणा मिल सकती है। 
अलका आर्य (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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