Sunday 29 May 2011

आरटीई लागू करने पर सरकारें सुस्त

भास्कर न्यूज . नई दिल्ली
शिक्षा के अधिकार पर केंद्र और राज्य सरकारें कितने भी लंबे-चौड़े वादे करें, जमीनी हकीकत यही है कि अभी भी बच्चों के लिए स्कूलों में दाखिला पाना टेढ़ी खीर है। लाखों की संख्या में बच्चे स्कूलों से बाहर हैं और राज्यों में नेबरहुड (पड़ोस) स्कूल की अवधारणा पर जद्दोजहद जारी है। महज 12 राज्यों ने ही अब तक इस संबंध में अधिसूचना जारी की है। स्कूली शिक्षा सचिव अंशु वैस ने केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की बैठक से पहले राज्यों को पत्र लिखकर आरटीई का स्टेटस मांगा है।
महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश की मुहिम से झटका  
महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में आरटीई के नियमों की अधिसूचना तक नहीं होने से कानून को अमल में लाने की कवायद बेमानी साबित हो रही है। महाराष्ट्र ने तो आरटीई के तहत एलिमेंटरी स्कूलिंग का नया मॉडल भी नहीं अपनाया है। निजी स्कूलों पर नकेल कसने में कमोबेश सभी राज्य सरकारों को पसीने छूट रहे हैं। कानून के तहत वन रूम वन क्लास टीचर चाहिए। जबकि अभी हजारों की संख्या में एकल शिक्षक स्कूल हैं। तीन साल में सभी अध्यापकों को प्रशिक्षण जरूरी है। लेकिन राज्य प्रशिक्षण संस्थानों की कमी को बहाना बना रहे हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल, उड़ीसा, मणिुपर, सिक्किम, मिजोरम में इस संबंध में अधिसूचना जारी हो गई है। केंद्र को हरियाणा, बिहार, झारखंड ने भी मौखिक रूप से नियमों की अधिसूचना जारी करने की जानकारी दी है। जबकि चंडीगढ़ आदि केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्र के नियमों को ही स्वीकार किया है।
राज्यों को थोड़ा वक्तदेने की जरूरत है। कानून लागू करने की दिशा में काफी कवायद हुई है। हमने राज्यों से अध्यापकों के खाली पद जल्दी भरने, टीचर्स ट्रेनिंग और आधारभूत ढांचे की दिशा में तत्परता से कदम उठाने को कहा है। - कपिल सिब्बल, मानव संसाधन विकास मंत्री
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