Friday, 1 April 2011

शिक्षा ढांचे में बदलाव

शिक्षा ढांचे में बदलाव प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के क्रम में शिक्षा ढांचे में किए गए बदलाव से उत्पन्न अनावश्यक असमंजस की स्थिति कतई उचित नहीं है। इससे उत्पन्न भ्रम को यथाशीघ्र दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि यह शिक्षक और शिक्षार्थियों के लिए घातक है। यह सही है कि नए शिक्षा सत्र से लागू होने वाले ये बदलाव काफी सोच-विचार कर किए गए हैं, लेकिन उनकी सफलता अभी संदिग्ध है। वैसे भी किसी प्रयोग की सफलता की संभावना कभी शत-प्रतिशत नहीं होती। शिक्षा जैसे क्षेत्र में परिवर्तन काफी सोच विचार कर किए जाने चाहिए, क्योंकि जब तक गलती सुधारी जाएगी, जब तक हजारों बच्चों का भविष्य बिगड़ चुका होगा। हालांकि अब तक जो विरोध आ रहा है, वह शिक्षकों के स्तर से ही है। छात्र और अभिभावक तो नए कायदे-कानून को समझ ही नहीं पाए हैं, इसलिए उनसे किसी राय की उम्मीद करना बेमानी है। अधिकारियों का यह कहना अपनी जगह सही है कि निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों से प्रतिस्पद्र्धा को ध्यान में रखकर ही बदलाव किए जा रहे हैं। एजुसेट के पीरियड का दूसरे विषयों के लिए उपयोग करने का निर्णय उचित ही है। खेल-कूद और सामान्य ज्ञान जैसे विषयों पर ध्यान देना भी समय की मांग है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कॅरियर काउंसलिंग की व्यवस्था भी अच्छे परिणाम देगी। अमूनन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का पारिवारिक परिवेश ऐसा नहीं होता, जो उन्हें जरूरी मार्गदर्शन देने में सक्षम हो। इसलिए कॅरियर काउंसलिंग से उनकी यह समस्या दूर हो जाएगी और वे अपना बेहतर भविष्य बना सकेंगे। असफलता के कारण अवसाद में जाने वाले विद्यार्थियों को भी इससे बचाने में मदद मिलेगी। अब स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि यह व्यवस्था सुचारू रूप से चले। स्कूलों का समय बढ़ाने को लेकर जो आपत्तियां आ रही हैं, उन्हें बिल्कुल खारिज कर देना सही नहीं है। अच्छा होगा कि इस पर जल्दबाजी न हो। समय बढ़ाने के कारण पांच दिन का सप्ताह करने की मांग तो कतई उचित नहीं होगी। हमें ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षा का क्षेत्र बैंकिंग आदि से अलग है और इसलिए वहां के फार्मूले यहां नहीं थोपे जा सकते। बहरहाल, विद्यालयों को जन निगरानी में लाने के लिए प्रबंधन समितियों के गठन का स्वागत किया जाना चाहिए। अच्छा होगा कि शिक्षक संगठन भी अपने हितों को ध्यान में रखकर ही सरकार की नीतियों का विरोध न करें
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