प्राइमरी शिक्षा विभाग में एजुसेट के बारे में ऑडिट विभाग की रिपोर्ट सचमुच आंखें खोलने वाली है। 1502 एजुसेट में से 760 यानी 50 फीसदी से अधिक खराब पड़े हैं। 75 उपकरण चोरी हुए लेकिन न तो किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय की गई और न ही इस नुकसान की भरपाई के लिए कोई प्रयास हुआ। प्राथमिक शिक्षा स्तर तक सिर्फ एजुसेट सिस्टम के नाम पर सवा छह करोड़ की चपत लग चुकी है। सरकारी स्वीकृति के बिना ही 460 चौकीदारों की नियुक्ति बिना सेवा शर्ते तय किए कर दी गई। ऑडिट रिपोर्ट शिक्षा विभाग के कामकाज के तरीके के खुलासे के लिए पर्याप्त है। सरकारी सामान की देखरेख पर कभी गंभीरता नहीं दिखाई गई। वास्तविकता यह है कि उच्च या उच्चतर विद्यालयों के एजुसेट सिस्टम भी लकवाग्रस्त है। सिस्टम खराब होने पर ठीक कौन कराए, अभी तक यह जिम्मेदारी भी तय नहीं हो पाई। सच तो यह है कि प्राइमरी से लेकर सीनियर सेकेंडरी तक एजुसेट सिस्टम लगभग सौ प्रतिशत तक ठप है। एकाध स्कूल को अपवाद माना जा सकता है जहां निजी रुचि से बैटरी खरीद या उपकरण मरम्मत पर कोई सार्थक, सकारात्मक पहल हुई। लगता यही है कि प्रदेश में शिक्षा प्रसार से ज्यादा उपकरणों की खरीद पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। उपकरण खरीदकर स्कूलों तक पहुंचाते समय जो उत्साह, सक्रियता और उदारता सरकार व विभाग की ओर से दिखाई जाती है, संचालन के समय तस्वीर कुछ उलट होती है। उस वक्त घोर निष्कि्रयता, उदासीनता का आलम दिखाई देता है। आंकड़े साक्षी हैं कि वित्तीय नियमावली के नियम 15.1 के अनुसार अधिकारियों ने सामान की देखरेख व रखरखाव में सतर्कता नहीं बरती और न ही इसके लिए किसी की जिम्मेदारी तय की गई। एजुसेट सिस्टम की विफलता का मुख्य कारण नई बैटरी की खरीद न हो पाना है। इसके लिए तीन बार सर्वेक्षण हो चुका है परंतु बात किस स्तर पर आकर अटकी, कोई नहीं बता रहा। मात्र दो अध्यापक व एक चपरासी वाले स्कूल में भी एजुसेट लगा दिया गया। तकनीकी क्षमता और जवाबदेही के अभाव में वहां कितने दिन तक काम चला होगा, आसानी से समझा जा सकता है। सरकार का शिक्षा विभाग की कार्यशैली में कसावट लाने के लिए नए सिरे से दायित्व निर्धारण करना होगा। जिम्मेदारी और जवाबदेही के बिना किसी भी विभाग की योजना की सफलता की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, प्राथमिक शिक्षा विभाग का उदाहरण सबके सामने है।