Thursday, 7 July 2011

आईएएस अफसर कटारिया पर गिर सकती है गाज

यह था घोटाला : वर्ष २००५-२००६ और वर्ष २००६-२००७ में सर्व शिक्षा अभियान के तहत कुल ७२ लाख ९५ हजार रुपए का सामान सप्लाई होना था। स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए साइंस किट खरीदे जाने थे। इसमें से ६० लाख रुपए का यह सामान रोहतक के खादी एवं विलेज इंडस्ट्रीज बोर्ड से खरीदा जाना था और इसकी सप्लाई अंबाला के एक ठेकेदार द्वारा की जानी थी। जब कमीशन लेने का मामला उजागर हुआ, इनमें से २४ लाख ४० हजार रुपए का सामान सप्लाई हो चुका था। इसके बाद एडीसी ने सामान की सप्लाई बंद करा दी।
मीडिया में आने के बाद हुआ केस दर्ज : जब यह मामला सार्वजनिक हो गया तो दबाव बनना शुरू हुआ। तत्कालीन एसपी नवदीप सिंह विर्क ने डीसी से उन दस्तावेजों की असली प्रतियां मांगी, जिनमें डीईईओ-कम-डीपीसी रामकुमार बैनीवाल और हैड क्लर्क सुरेश कुमार ने कमीशन की राशि लेना कबूल किया था। डीसी ने इसके जवाब में कहा था कि उन्होंने यह दस्तावेज स्टेट प्राजेक्ट को-आर्डिनेटर को भेज दिए हैं। बाद में दस्तावेज मिल भी गए और उसके बाद इन दोनों पर मुकदमा दर्ज किया गया।
दैनिक भास्कर ने किया था खुलासा : बता दें कि सर्व शिक्षा अभियान के अंदर चल रहे इस गोलमाल का भंडाफोड़ पांंच अप्रैल २००७ को दैनिक भास्कर ने किया था। मामले की तह तक पहुंचने से लेकर हर कार्रवाई को भास्कर ने प्रमुखता से प्रकाशित किया, जिसके बाद आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया।
आईएएस अधिकारी राजेंद्र कटारिया सर्व शिक्षा अभियान के तहत साइंस किट खरीदने में हुए कमीशनखोरी घोटाले में पाक साफ नहीं रहे। उन्होंने डीसी रहते हुए अपने अधिकारों का पूरा फायदा उठाया व घोटाले को दबाने के पूरे प्रयास किए। घोटाले से जुड़े हर कर्मचारी के बयान से ये बात साफ हो जाती है। कैथल के तत्कालीन एडीजे एके शौरी की सेवाएं समाप्त करने के बाद तत्कालीन डीसी रहे कटारिया पर भी गाज गिर सकती है। घोटाले का खुलासा तत्कालीन एडीसी संजीव वर्मा ने किया था।

कटारिया ने नहीं होने दी थी कार्रवाई : थाना शहर के तत्कालीन एसएचओ कृष्ण लाल वर्मा ने लिखित में बयान दिए थे कि मामले के आरोपी डीईईओ- कम -डीपीसी रामकुमार बैनीवाल व हैड क्लर्क सुरेश कुमार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से उन्हें डीसी राजेंद्र कटारिया ने रोका था। एसएचओ ने १२ अप्रैल २००७ को डीसी, एसपी व एडीसी को पत्र क्रमांक २७६५३-२७६५५ में यह बात लिखकर दी थी। उनके मुताबिक डीसी ने कहा था कि एक अप्रैल को छह लाख रुपए रेडक्रास में जमा करा दिए जाएंगे। इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करनी है। पैसे लेकर इन्हें फारिग कर दो। वे स्वयं इस मामले की जांच करेंगे। इसके अलावा रेडक्रास सोसायटी सचिव आरएस मोर को कमीशन घोटाले की राशि की रसीद गुप्तदान के रूप में काटने को भी डीसी ने ही कहा। सचिव मोर ने अदालत में ऐसे ही बयान दिए थे। इस तरह हर सूई तत्कालीन डीसी की तरफ घूम जाती है। रेडक्रास सोसायटी के सचिव आरएस मोर को कमीशन घोटाले की राशि की रसीद गुप्तदान के रूप में काटने को भी डीसी ने ही कहा। सचिव मोर ने अदालत में ऐसे ही बयान दिए थे। एडीसी संजीव वर्मा द्वारा कमीशन घोटाला पकडऩे के बाद डीईईओ-कम-डीपीसी रामकुमार बैनीवाल और हैड क्लर्क सुरेश कुमार ने थाना सिटी प्रभारी को लिखित में स्वीकार किया था कि उन्होंने दस लाख रुपए का कमीशन लिया है। छह लाख रुपए वे एक अप्रैल को जमा करा देंगे और बाकी चार लाख रुपए बाद में। एक अप्रैल २००७ को छह लाख रुपए रेडक्रास में गुप्तदान के रूप में जमा हुए और चार लाख रुपए चार अप्रैल को।
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