जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली लगभग तीन साल की कोशिशों के बाद पीपीपी (सार्वजनिक व निजी भागीदारी) मॉडल स्कूलों के खुलने की उम्मीद बनती दिख रही है। सरकार ने उसका मसौदा तैयार कर लिया है। निजी क्षेत्र को न सिर्फ जमीन का इंतजाम खुद करना होगा, बल्कि स्कूल भवनों के निर्माण व संसाधनों आदि का सारा खर्च भी उठाना होगा। उन्हें छूट यह होगी कि मैनेजमेंट कोटे की सीटों की फीस वह खुद की तय करेंगे। जबकि स्कूल के लिए जमीन खरीदने में राज्य सरकारें उनकी मदद करेंगी। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लाकों को छोड़ बाकी ब्लाकों में खुलने वाले पीपीपी मॉडल के 2500 स्कूलों के लिए सारी तैयारियां कर ली हैं। राज्य सरकारों ने भी उसके मसौदे को मंजूरी दे दी है। लिहाजा अब उसे जल्द ही कैबिनेट के पास भेजा जाना है। मसौदे के तहत इन स्कूलों के लिए सरकार व निजी क्षेत्र के बीच दस साल के लिए करार होगा। जमीन खरीदने, भवन बनाने और संसाधनों को जुटाने और उस पर खर्च की पूरी जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की होगी। ये स्कूल सोसाइटी या ट्रस्ट के जरिए खोले जा सकेंगे। इन स्कूलों के दाखिले में राज्य सरकार के नियमों के तहत सरकारी कोटा लागू होगा, जिसमें हर श्रेणी में 33 प्रतिशत लड़कियों को मौका मिलेगा। हर कक्षा में 140 छात्र और हर स्कूल में अधिकतम 980 छात्र सरकार प्रायोजित होंगे। उन पर आने वाले फीस व अन्य खर्च का भुगतान सरकार केंद्रीय विद्यालयों में एक छात्र पर आने वाले खर्च के लिहाज से करेगी। जबकि बाकी छात्रों व मैनेजमेंट कोटे की सीटों के मामले में फीस तय करने का अधिकार निजी क्षेत्र को होगा। राज्य सरकारें निजी क्षेत्र को जमीन खरीदने में मदद करेंगी। साथ ही उनसे अपने कोटे के छात्रों को ड्रेस व किताब-कापी उपलब्ध कराने की अपेक्षा की गयी है। दस साल का करार पूरा होने से पहले आपसी सहमति से आगे के लिए नया करार हो सकेगा।