न्यायालय ने कहा है कि शिक्षामित्र किसी भी प्रकार के अध्यापक की श्रेणी में नहीं आते हैं।
इलाहाबाद (ब्यूरो)।
प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक बनने का सपना फिलहाल पूरा होता नजर नहीं आ रहा। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने उन्हें सहायक अध्यापक बनाने के लिए प्रस्तावित प्रशिक्षण पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा है कि शिक्षामित्र किसी भी प्रकार के अध्यापक की श्रेणी में नहीं आते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने प्रदेश के बीएड डिग्रीधारकों की ओर से संतोष कुमार मिश्र द्वारा दाखिल याचिका पर दिया है। न्यायालय के इस आदेश से प्रदेश के करीब एक लाख 22 हजार स्नातक शिक्षा मित्रों की उम्मीदों को गहरा झटका लगा है। याचिका में कहा गया है कि शिक्षा मित्रों की नियुक्ति बेसिक शिक्षा नियुक्ति अधिनियम 1981 के विरुद्ध की गई है। इसलिए इनको प्रशिक्षण देकर सहायक अध्यापक बनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे ने दलील दी कि सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि यदि प्रशिक्षित लोग उपलब्ध हैं तो अप्रशिक्षित लोगों को उनके स्थान पर नहीं रखा जा सकता है। एनसीटीई की 23 अगस्त 2010 की गाइड लाइन का हवाला दिया गया कि अप्रशिक्षित लोगों की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। प्रदेश में लगभग छह लाख बीएड डिग्री धारक हैं जिनको सरकार सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त कर सकती है। न्यायालय ने अपने आदेश में शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण पर रोक लगाते हुए कहा कि शिक्षा मित्र अध्यापकों की श्रेणी में नहीं आते हैं इसलिए इनको प्रशिक्षण देने का औचित्य नहीं है।
गौरतलब है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रदेश सरकार ने एक योजना के तहत शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देकर सहायक अध्यापक बनाए जाने की योजना बनाई है। इसके लिए मास्टर ट्रेनर्स का प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया गया है। शिक्षा मित्रों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की भी तैयारी हो गई। योजना थी कि शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण के बाद बीएड डिग्रीधारकों को प्रशिक्षण देकर उन्हें नियुक्ति दी जाए लेकिन कोर्ट के नए आदेश से पूरी योजना खटाई में पड़ गई है।