नीति में पारदर्शिता जरूरी
सरकार
अपनी शिक्षा नीति को निष्पक्ष एवं पारदर्शी साबित करने के चाहे लाख दावे
करे पर हर दिन उसके फैसलों से परिस्थितियां कुछ ऐसी बन रही हैं कि जवाब
देते नहीं बन रहा। पात्र अध्यापकों द्वारा लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं कि
शिक्षा विभाग गेस्ट टीचरों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहा
है। इसी क्रम में सरकार ने चार वर्ष का अनुभव रखने वाले गेस्ट टीचरों को
पात्रता परीक्षा से छूट भी दी। क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। अब
पात्र अध्यापक आमरण अनशन के रूप में सरकार के खिलाफ अपने आक्रोश का
प्रदर्शन करने जा रहे हैं। उनका आरोप किसी हद तक न्यायोचित भी माना जा सकता
है कि राज्य में एक लाख से ज्यादा पात्र अध्यापकों की मेहनत पर पानी फेरने
की कोशिश की जा रही है ताकि सभी गेस्ट टीचरों को अंदरखाते पक्की सरकारी
नौकरी दी जा सके। इस वास्तविकता से इन्कार नहीं किया जा सकता कि शिक्षा
नीति के झोल बार-बार सार्वजनिक हो रहे हैं। सेवा नियमों पर विवाद लगातार
जारी हैं। पहले अनुबंध के आधार पर अध्यापकों की नियुक्ति की बात चली। फिर
उस फैसले पर यू-टर्न लेते हुए नियमित आधार पर नियुक्ति का फैसला लिया गया।
विभाग यह प्रचारित करके पात्र अध्यापकों की बेचैनी बढ़ा चुका है कि 25 हजार
अध्यापकों की नियुक्ति इसी वर्ष सितंबर माह से पहले कर ली जाएगी। एक
स्टैंड पर कायम न रहना यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि शिक्षा विभाग
अपनी नीतियों के प्रति स्वयं आश्वस्त नहीं है। निर्णयों में परिपक्वता न
होने पर पूरी व्यवस्था को हर कदम पर अवरोध ङोलने को मजबूर होना पड़ता है। हालांकि सरकार ने गेस्ट टीचरों को बेरोजगार होने से बचाने के लिए हर संभव उपाय किया है पर अपनी कोशिशों के दौरान अनजाने में ही शिक्षकों के दो परस्पर विरोधी वर्ग तैयार हो गए हैं जिनके बीच कभी भी टकराव हो सकता है। पात्र अध्यापकों का आमरण अनशन सरकार की परेशानियां निश्चित तौर पर बढ़ाएगा। सरकार को यह भी देखना है कि कहीं इनकी देखा-देखी गेस्ट टीचर भी मोर्चा न खोल दें। व्यापक संदर्भों में राजनैतिक प्रतिबद्धता को दरकिनार करके ही समस्या का स्थायी समाधान संभव हो सकता है। सरकार को दोनों ही शिक्षक वर्गो की भावनाओं और व्यावसायिक हितों को समान महत्व देना होगा। मामले की गूंज चूंकि सत्ता के केंद्रीय गलियारों तक पहुंच चुकी है लिहाजा राज्य सरकार को दो स्तरों पर जवाबदेही पर भी खरा उतरना होगा।