Tuesday, 15 May 2012

हरियाणा का शिक्षा विभाग फिर कठघरे में



हरियाणा का शिक्षा विभाग फिर कठघरे में अपनी प्रभावहीन कार्यशैली, दायित्व निर्वाह की कमजोरी और सुस्ती के लिए एक बार फिर कठघरे में आ गया है। उच्च न्यायालय ने कई कारणों से उसे फटकार लगाई है जिससे लगता है कि यदि सुधार न किया गया तो शिक्षा क्षेत्र में अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है। विभाग की लापरवाही के कारण पिछले वर्ष भर्ती हुए नौ हजार जेबीटी अध्यापकों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई है। इनके अध्यापक पात्रता परीक्षा यानी एचटेट प्रमाणपत्र की जांच का हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष आदेश दिया था लेकिन कथित सक्रियता, कार्य निष्पादन की तत्परता का आलम देखिये कि आठ माह के दौरान केवल 48 अध्यापकों के प्रमाणपत्र ही जांचे जा सके। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि यही गति रही तो पूरे प्रमाणपत्रों की जांच में तो दशकों लग जाएंगे या ऐसा भी हो सकता है कि जेबीटी अध्यापकों की रिटायरमेंट के बाद ही जांच रिपोर्ट आए। सरकार को स्वयं समझना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है कि बार-बार शिक्षा विभाग मजाक का पात्र बन रहा है। सरकार स्वत: संज्ञान लेकर विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही? कोर्ट के आदेशानुसार सभी नौ हजार जेबीटी अध्यापकों के प्रमाणपत्रों की जांच होगी और कमी पाए जाने पर नियुक्ति रद्द भी की जा सकती है। ऐसा संभवत: पहली बार होगा कि सभी नियुक्त अध्यापकों को प्रतिवादी बनाया जाएगा। लग तो यही रहा है कि समन्वय के स्तर पर शिक्षा विभाग में भारी विसंगति एवं विरोधाभास है। योजनाएं जब एक-दूसरी की उपयोगिता की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाने लगें तो माना जाना चाहिए कि कहीं न कहीं गंभीर चिंतन-मनन या पुन: समीक्षा की आवश्यकता है। यहां तो योजनाओं के साथ तत्परता का मामला भी जुड़ा है। नियुक्ति प्रक्रिया की तमाम वैधानिक औपचारिकताएं आखिर क्यों पूरी नहीं की गई? यदि एक भी एचटेट प्रमाणपत्र में धांधली या अनियमितता पाई गई तो समूची प्रक्रिया और सरकार की साख घेरे में आ जाएगी। गेस्ट टीचरों पर पहले से ही सवाल उठाए जा रहे हैं। राज्य सरकार 25 हजार और अध्यापकों की नियुक्ति करने जा रही है। यदि खामियों,अपरिपक्वता, दिशाहीनता का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो कई ऐसे चक्रव्यूह खड़े हो जाएंगे जिनसे बाहर निकलने का कोई रास्ता सरकार को नजर नहीं आएगा।

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