Monday, 21 November 2011

आसान नहीं शिक्षा के अधिकार की राह

मानव संसाधन विकास और दूरसंचार जैसे दो भारी-भरकम मंत्रालयों का कार्यभार संभाल रहे केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल फिलहाल बहुत संभलकर बोल रहे हैं। जनलोकपाल पर टीम अन्ना और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीएजी के आंकड़ों पर सवाल उठाने के बाद सिविल सोसाइटी से लेकर विपक्ष के निशाने पर आए सिब्बल विवादों में पड़ने के बजाय अपने दोनों मंत्रालयों पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। बतौर मानव संसाधन विकास मंत्री चाहे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की बात हो या फिर दूरसंचार मंत्रालय में स्पेक्ट्रम आवंटन से लेकर दूसरे विषय, उन्हीं मसलों पर वह ध्यान दे रहे हैं। संसद के आगामी सत्र में शिक्षा के क्षेत्र में कई विधेयक आने हैं तो 2जी मसले पर नित होते नए खुलासों और सरकार के भीतर बढ़ते विवादों पर कपिल सिब्बल से राजकिशोर ने बातचीत की। पेश हैं उसके प्रमुख अंश- शिक्षा का अधिकार कानून बन गया है, क्या कुछ नतीजे सामने आ रहे हैं और क्या चुनौतियां हैं? देखिए ये तो बहुत लंबा रास्ता है। ये कोई छोटा रास्ता नहीं है कि सफलता तुरंत दिखने लगे। खासतौर से शिक्षा का जहां तक सवाल है तो ये तो आने वाले वर्ष ही बताएंगे कि किस हद तक आरटीई सफल रहा और शिक्षा में सुधार का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ा। आप प्रगति से संतुष्ट हैं? इसका मैं हां या न में जवाब नहीं दे सकता। मगर अभी सभी राज्यों को इसके लिए बुनियादी ढांचा खड़ा करने में दो साल लगेंगे। हम कोशिश कर रहे हैं कि सभी राज्यों के लिए जल्द से जल्द अधिसूचना जारी हो जाए, ताकि हम उन्हें पैसा तुरंत देना शुरू कर दें। सभी राज्य सरकारें कोशिश कर रही हैं। तीन-चार साल बाद आपको असली प्रभाव दिखेगा। राज्य आपसे ज्यादा धन मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि केंद्र नियमों पर अडि़यल रवैया अपना रहा है? नहीं हम कतई नहीं अड़ रहे हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे दो-चार बड़े राज्यों का कहना है कि सौ फीसदी धन सरकार से मिलना चाहिए। यहां शिक्षा इतनी पिछड़ी हुई है कि राज्यों का कहना है कि उनके पास इसे लागू करने के लिए धन नहीं है। वे कह रहे हैं कि 32-35 फीसदी भार भी बहुत ज्यादा है। मगर बाकी राज्यों को कोई दिक्कत नहीं है। तो इतनी बड़ी आबादी वाले राज्यों की मांग पर आप क्या सोच रहे हैं? शायद हमें यह सोचना पड़ेगा कि जमीनी स्तर पर स्थिति देखते हुए क्या करना चाहिए। हालांकि यह हम जरूर कहना चाहेंगे कि राज्यों की तरफ से ठहराव है। इस कानून का ढांचा देखो तो जब केंद्र और राज्य सरकार, स्कूल मैनेजमेंट कमेटी, पंचायत, एनजीओ, अभिभावक और बच्चे सभी तालमेल के साथ आगे नहीं चलेंगे तब तक इसे नहीं किया जा सकता। सामूहिक जिम्मेदारी का निर्वाह सबको करना होगा, तभी शिक्षा का अधिकार कानून सफल होगा। कांग्रेस और सहयोगी दलों के सांसद भी शिक्षा सुधारों का विरोध कर रहे हैं। इसके चलते संसद में एक बार आपके मंत्रालय का विधेयक भी गिर गया। सुना है कि आप इस दफा सबके साथ पहले ही बैठकें कर रहे हैं, क्या प्रतिक्रिया है उनकी? मुझे पूरी उम्मीद है कि विधेयक संसद में इस दफा पारित हो जाएगा। दरअसल, जब बिल संसद में आता है तो कुछ शंकाएं उस समय होती हैं। अगर पहले बातचीत हो जाए तो शंका दूर हो जाती है। सत्र से पहले अपने सहयोगी दलों को बुलाया है और कोई भी सांसद ऐसा नहीं था जो विरोध में हो। अब बात आपको बाद में मिले दूरसंचार मंत्रालय की, 2जी जैसी गड़बड़ आगे न हो, इसके लिए क्या कुछ पुख्ता तंत्र बनाने में सफल हो पाए हैं आप? देखिए अब भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश ही नहीं है। हमने लाइसेंस और स्पेक्ट्रम अब अलग कर दिया है। अब हमारी नीति है कि स्पेक्ट्रम के दाम बाजार का तंत्र तय करेगा। वह तंत्र क्या होगा, यह तभी तय होगा जब हम स्पेक्ट्रम आवंटन शुरू करेंगे। यह पारदर्शी हो इसके लिए पूरी तरह से इलेक्ट्रानिक माध्यम से आवंटन होगा। गड़बड़ का सवाल ही नहीं। अभी दूरसंचार के लिए आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या है? हम चाहते हैं कि बाजार मजबूत हो और दूसरे, दुनिया की जो बड़ी कंपनियां यहां नहीं आई हैं वे भी आएं। अगर वे आती हैं तो प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और स्पेक्ट्रम की कीमत भी ज्यादा मिलेगी। आपने दूरसंचार मंत्रालय संभालते समय कई वायदे किए थे, मौजूदा विवादों की आंच में कहीं वे पीछे तो नहीं छूट गए? कतई नहीं, हमने जो वायदा किया था, सब बिल्कुल समय पर है। टेलीकाम पालिसी, आइटी पालिसी और एक मैन्युफैक्चरिंग पालिसी की हम घोषणा कर चुके हैं। जनवरी 2012 में इस पालिसी का अंतिम रूप सामने आ जाएगा। लाइसेंसिंग और रोलआउट दिसंबर 2011 से पहले हो जाएंगे। आप भरोसा रखिए कि दिसंबर 2012 से पहले आने वाले वर्षो में इस सेक्टर की प्रतिष्ठा दोबारा स्थापित कराएंगे। स्पेक्ट्रम आवंटन पर कानून बनाने की बात है, क्या संसद के सत्र में इसे लाएंगे? अभी ऐसी कोई बात नहीं है। अभी हम अपनी पालिसी तय करेंगे और हमारे सामने जो मुद्दे हैं, उन्हें देखेंगे। स्पेक्ट्रम एक्ट जरूर आएगा, लेकिन फिलहाल हम इसके आवंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सुविधाएं देने के लिए यूएसओ फंड की सुविधा का क्या दुरुपयोग हो रहा है? नहीं कोई विवाद नहीं है। हम मानते हैं कि उत्तर पूर्व या छत्तीसगढ़ जैसे तमाम सुदूर इलाकों में कंपनियों के लिए काम करना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन सवाल यह है कि जब कंपनियों ने मंत्रालय के साथ करार किया था तो उस समय भी उन्हें इन समस्याओं के बारे में तो पता ही था। मौजूदा हालात को देखते हुए हमने एक कमेटी गठित की है जिसकी रिपोर्ट के आधार पर हम अपना अगला कदम तय करेंगे। आप ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं का फायदा पहुंचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अभी सिर्फ 36 फीसदी आबादी इस सेवा का फायदा उठा पा रही है। यह आगे बढ़ रहा है और हम करीब 45 फीसदी ग्रामीण भारत को सुविधा दे रहे हैं। हमें पूरा यकीन है कि पांच सालों में 60 फीसदी ग्रामीण दूरसंचार सेवा से लैस होंगे। क्या वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आपको 3जी कंपनियों को रियायत देने की पैरवी वाला पत्र लिखा था, जिसे आपने खारिज कर दिया है? (चौंकते हुए).नहीं..नहीं. 3जी कंपनियों को रियायत देने पर मेरे पास कोई लेटर है। नहीं-नहीं ऐसा कोई लेटर नहीं आया।
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