Monday 7 November 2011

भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब

नई दिल्ली, एजेंसी : संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी की गई मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में, दुनिया के सबसे ज्यादा बहुआयामी गरीब रहते हैं। संस्था के अनुसार भारत में 61 करोड़ लोग गरीब हैं जो कि देश की आधी आबादी से भी ज्यादा है। रिपोर्ट में बहुआयामी गरीबी का मूल्यांकन करने के लिए आय के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को भी तरजीह दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक बहुआयामी गरीबों की संख्या निकालने वाला ये सूचकांक एक समुचित-सटीक तस्वीर पेश करता है जो कि केवल आय के मानकों से संभव नहीं हो सकती। इस सूचकांक के मुताबिक दुनिया के दस सबसे गरीब देश तो सब-सहारा अफ्रीका में हैं लेकिन अगर किसी एक देश में कुल संख्या के हिसाब से की बात की जाए तो दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश) में रहते हैं। भारत सरकार ये मानती है कि देश की एक-तिहाई जनता गरीबी रेखा के नीचे रहती है। असमान मानव विकास पर यूएनडीपी की इस रिपोर्ट में मूल तौर पर मानव विकास सूचकांक तीन प्रमुख आयामों, शिक्षा, स्वास्थ्य और आय में हुई प्रगति के आधार पर देशों को श्रेणीबद्ध करता है। यूएनडीपी (भारत) के निदेशक केटलिन वीसेन ने कहा कि हमें भारत में औद्योगिक विकास के कार्यक्रमों पर व्यापक अध्ययन कर ये सुनिश्चित करना होगा कि वो गरीब लोगों को भी फायदा पहुंचाए। वर्ष 2011 में अब तक के सबसे ज्यादा 187 देशों को श्रेणीबद्ध किया गया जिनमें उभरती अर्थव्यवस्था में अग्रणी देशों में समझा जाने वाला भारत 134वें पायदान पर रहा। चीन, 101वें पायदान पर और पाकिस्तान 145वें पायदान पर है। नार्वे, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड सूची में सबसे ऊपर रहे, अमेरिका चौथे और जापान 12वें नंबर पर रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य और आय के मानकों पर विकास तो हुआ है लेकिन ये इन देशों की जनता के किसी हिस्से में बहुत ज्यादा है और किसी में बहुत कम है। इसी तरीके से सूचकांक पर चौथे पायदान पर अमेरिका भी असामनताओं को संज्ञान में लेने पर 23वें नंबर पर आ जाता है। पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां रिपोर्ट में भारत सरकार की 100 दिनों का रोजगार देने वाली मनरेगा की सराहना की है। साथ ही प्रदूषण, वनों की कटाई और बढ़ता जलस्तर एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी बताया है। औद्योगिक विकास और वनों की कटाई की वजह से जो चुनौतियां दुनिया के सामने हैं उन्होंने देशों के भीतर असमानताओं को और बढ़ा दिया है। आय के वितरण की स्थिति और बिगड़ी है।
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