Saturday 29 October 2011

सजा के दिन लागू नीति से होगी उम्रकैदियों की रिहाई

नई दिल्ली, माला दीक्षित : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उम्रकैदियों की रिहाई सजा की तिथि पर लागू नीति से तय होगी, न कि समयपूर्व रिहाई के लिए आवेदन करने की तिथि पर लागू नीति से। कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। पटना हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नौ उम्रकैदियों की रिहाई अर्जी पर विचार करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बिहार में 1984 से 2002 के बीच उम्रकैद की सजा पाने वाले कैदियो में रिहाई की उम्मीद जगी है। 14 साल का वास्तविक कारावास तथा छुट्टियों आदि को मिला कर 20 साल की कैद पूरी करने वाले उम्रकैदी समयपूर्व रिहाई का आवेदन कर सकेंगे। उनके मामले में 1984 की पुरानी नीति ही लागू होगी। न्यायमूर्ति एचएल दत्तू व न्यायमूर्ति सीके प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के ही हरियाणा बनाम जगदीश के मामले में दिए गए पूर्व फैसले को आधार मानते हुए यह आदेश सुनाया है। पीठ ने बिहार सरकार के वकील मनीष कुमार की ये दलील खारिज कर दी कि हरियाणा मामले में दिया गया फैसला राज्यपाल और राष्ट्रपति के माफी के अधिकार के बारे में है, जबकि यह मामला सीआरपीसी और जेल मैनुअल में दिए गए प्रावधानों पर है। पीठ ने कहा कि अंतत: परिणाम तो एक ही होगा। उधर अनिल कुमार व अन्य की ओर से वकील राजकुमार गुप्ता ने सरकार की याचिका का विरोध किया और पटना हाई कोर्ट के फैसले को सही बताया। उन्होंने कहा कि अनिल के साथी कैदियों को राज्य सरकार ने पुरानी नीति का लाभ देते हुए रिहा कर दिया है, जबकि अनिल की अर्जी खारिज कर दी है। मामला बिहार में गया जिले के खिजारसराय थाने का है। 1989 में 19 लोगों पर हत्या और डकैती का मुकदमा चला। इसमें नौ लोग बरी हो गये, लेकिन अनिल कुमार सहित दस लोगों को गया के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 29 फरवरी 1992 को उम्रकैद की सजा सुनाई। 16 साल कारावास काटने के बाद अनिल ने 1984 की नीति को आधार बनाते हुए रिहाई के लिए आवेदन किया। उस नीति में 14 वर्ष का वास्तविक कारावास पूरा करने और छुट्टियों सहित 20 वर्ष की कैद पूरी होने पर रिहाई की बात कई गई थी। इस बीच राज्य सरकार ने 2002 में नई नीति लागू कर दी। जिसमें गंभीर अपराध में दोषियों के लिए कुछ शर्ते लगा दी गई थीं। सरकार ने अनिल का आवेदन खारिज कर दिया। वह हाई कोर्ट गया और हाई कोर्ट ने सरकार को पुरानी नीति के मुताबिक अर्जी पर विचार करने का आदेश दिया।
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