Saturday, 17 September 2011

हाईटेक विडंबना

अजीब विडंबना है कि सरकारी स्कूल कंप्यूटरों से लदे पड़े हैं लेकिन प्रशिक्षित करने वाले बेहद कम और अल्प शिक्षित हैं। राज्य के 2622 उच्च व राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में कंप्यूटर लैब हैं पर 90 फीसद प्रधानाचार्यो, मुख्य अध्यापकों, खंड शिक्षा जिला मौलिक शिक्षा व जिला शिक्षा अधिकारियों को कंप्यूटर का ज्ञान भी नहीं। हालत यह है कि एक हजार से अधिक विद्यार्थियों वाले 10 जमा दो सरकारी स्कूल में भारी भरकम कंप्यूटर लैब को संभालने के लिए एक या दो कर्मचारी नियुक्त हैं। सरकारी शिक्षा ढांचे को आधुनिक रूप देने के लिए सभी अधिकारियों को कंप्यूटर साक्षर बनाने का शिक्षा विभाग का आदेश यदि ईमानदारी के साथ लागू किया गया तो अनेक समस्याओं का स्वत: समाधान हो सकता है। सरकारी स्कूलों में उच्च अधिकारियों के आदेश या शिक्षा निदेशालय के निर्देश संबंधित अधीनस्थ अधिकारी, कर्मचारी या विभाग तक पहुंचने में अब भी कई दिन लग जाते हैं। प्रतियोगिताओं, आयोजनों, यहां तक कि आकस्मिक अवकाश की सूचना भी स्कूल प्रधानाचार्यो, मुख्य अध्यापकों तक समय पर नहीं पहुंचती और उन्हें अखबारों से जानकारी मिलती है। बात सिर्फ सूचना तक सीमित नहीं है। जवाबदेही से बचने या टालने का अचूक हथियार यह जवाब होता है कि सूचना अभी नहीं मिली। इसी विलंब की आड़ में सूचना या आदेश का संदर्भ बदलने की कोशिश की जाती है। रिमोट एरिया में स्थिति और भी निराशाजनक है। प्रश्न यह भी है कि जिन स्कूलों में मुख्याध्यापकों, अध्यापकों को स्वयं कंप्यूटर का ज्ञान नहीं, जहां दक्ष कंप्यूटर शिक्षक नहीं, वहां बच्चों को बेहतर कंप्यूटर शिक्षा कैसे मिल सकती है? हालांकि हर सरकारी स्कूल में हब-सर्वर भी लगाया गया परंतु जितना ध्यान उपकरण उपलब्ध कराने पर दिया गया, क्या संचालन और प्रशिक्षण नेटवर्क को उतनी तवज्जो दी गई? अधिकारियों के बीच वीडियो कांफे्रसिंग की भी पहल विभाग की ओर से की गई परंतु जिन स्कूलों में एजुसेट सिस्टम दम तोड़ गया, बैटरी न बदले जाने से कंप्यूटर नाकारा हो गए, वहां संचार क्रांति क्या इतनी आसान होगी? यह योजना भी बनी कि हर जिले, उपमंडल में तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी लेकिन प्रभावशाली योजना और त्वरित निर्णय क्षमता के अभाव में गाड़ी पटरी पर नहीं चढ़ पाई। शिक्षा विभाग की नई योजना निश्चित तौर पर सराहनीय है।
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